Wednesday, December 28, 2011
पापड़ बेले हैं !
जाने कितने
रामलाल ने
सचमुच
पापड़ बेले हैं
बचपन में
आँसू ने बह बह
गहरा सागर रूप धरा
हुई नसीब न
दूध बूँद की
पानी पी पेट भरा
समय समाज कर्ज के ढेरों
हरदिन
झापड़ झेले हैं
बेचारी
अम्मा ने भेजा
ढोर चराने जंगल में
काले आखर भैंस बराबर
खूब रमा मन दंगल में
दाँव -पेंच के उस्तादों से
अनगिन
मन्त्र सीखे हैं
घर आँगन
खलिहान खेत के
सिर पर भारी क़र्ज़ लदा
रामलाल ने
होश सभाला
रहता हैं ग़मगीन सदा
सिर को
झंझट घेरे हैं
[भोपाल:३०.०८.०७]
:
सचमुच
पापड़ बेले हैं
बचपन में
आँसू ने बह बह
गहरा सागर रूप धरा
हुई नसीब न
दूध बूँद की
पानी पी पेट भरा
समय समाज कर्ज के ढेरों
हरदिन
झापड़ झेले हैं
बेचारी
अम्मा ने भेजा
ढोर चराने जंगल में
काले आखर भैंस बराबर
खूब रमा मन दंगल में
दाँव -पेंच के उस्तादों से
अनगिन
मन्त्र सीखे हैं
घर आँगन
खलिहान खेत के
सिर पर भारी क़र्ज़ लदा
रामलाल ने
होश सभाला
रहता हैं ग़मगीन सदा
सिर को
झंझट घेरे हैं
[भोपाल:३०.०८.०७]
:
Posted by प्रो० डा. जयजयराम
Tuesday, November 29, 2011
यदि मैं हाथी होता !
घोड़ा बंदर रीछ न होता
घोड़ा बंदर रीछ न होता
यदि मैं सचमुच हाथी होता
दौड़ा दौड़ा जयपुर जाता
संगी साथी सब ले जाता
होली वहां मनाता
रंग गुलाल उड़ाता
जगर मगर परिधान पहनता
पहला नम्बर मुझको मिलता
पायल/घुंघरू पाँव बाँधता
कभी न नाचा ऐसा नचता
सबका जी बहलाता
करतब अजब दिखाता
[फ्रिदिरिक्तन
काम इनाम
काम काम ,बस ,काम
जो करता है काम
मिलता उसे इनाम
नाम नाम बीएसननाम
करे न kk
Saturday, November 26, 2011
सुन सुन सुन ओ विज्ञानी !
सुन सुन सुन ओ विज्ञानी
सौ सौ काम भलाई के
पर कुछ काम बुराई के
खेल खिलौनें सुख साधन
बच्चे करते अभिबादन
कर में बन्दूक थमाई
बम की सारी चतुराई
जो सबसे बड़ी बुराई
अब कैसे थमे लड़ाई
क्यों कर बैठे शैतानी ?
[सैंट जॉन :कनाडा :२६.११.२०११]
Thursday, November 17, 2011
डाक्टर अनाक्न्द के दो बालगीत
भीगी बिल्ली
दादा जी तबियत के अक्खड़
जब बोलेन तब तोड़ें लक्कड़
पर नातिन की अमृत वाणी
सुनते ही हों पानी पानी
नातिन कहती बनते घोड़ा
बरसाती फिर फटाफट कोड़ा
झटपट झटपट पहुंचें दिल्ली
बन जाते फिर भीगी बिल्ली
हाथ न आये जूता
जूता तो बस जूता
कर बैठे जब खूता
विश्वयुद्ध हो अगला
समझो उसे न पगला
नाक कान जब काटे
दुश्मन छक्के छूटे
चुपके से घर आये
कोने में छिप जाये
ढूढें सब जब जूता
हाथ न आये जूता
[सैंट जॉन :कनाडा :२१.१० २०११]
दादा जी तबियत के अक्खड़
जब बोलेन तब तोड़ें लक्कड़
पर नातिन की अमृत वाणी
सुनते ही हों पानी पानी
नातिन कहती बनते घोड़ा
बरसाती फिर फटाफट कोड़ा
झटपट झटपट पहुंचें दिल्ली
बन जाते फिर भीगी बिल्ली
हाथ न आये जूता
जूता तो बस जूता
कर बैठे जब खूता
विश्वयुद्ध हो अगला
समझो उसे न पगला
नाक कान जब काटे
दुश्मन छक्के छूटे
चुपके से घर आये
कोने में छिप जाये
ढूढें सब जब जूता
हाथ न आये जूता
[सैंट जॉन :कनाडा :२१.१० २०११]
Sunday, November 13, 2011
सबके हाथ किताब
दादा जी के हाथ किताब
दादी जागी
बिल्ली भागी
गरम गरम टी
दादा मांगी पीकर थामी हाथ किताब
खाना खाया
चुन्ना मुन्ना
मम्मी पप्पा
दादी दादा
खाकर दादा पढ़ें किताब
सबका बस्ता
अपना अपना
हमने सिखा
सबने सीखा
सबके हाथों हाथ किताब
[सैंट जॉन :कनाडा :१२.११ २०११]
दादी जागी
बिल्ली भागी
गरम गरम टी
दादा मांगी पीकर थामी हाथ किताब
खाना खाया
चुन्ना मुन्ना
मम्मी पप्पा
दादी दादा
खाकर दादा पढ़ें किताब
सबका बस्ता
अपना अपना
हमने सिखा
सबने सीखा
सबके हाथों हाथ किताब
[सैंट जॉन :कनाडा :१२.११ २०११]
Saturday, November 12, 2011
बतला गुडिया रानी
बतला गुड़िया रानी ,किससे सुनूँ कहानी ?
कहतीं हूँ मैं सच सच
मत करना तुम किच किच
बहुत दूर रहतीं हैं
मेरी नानी सुचमुच
मैं कहतीं हूँ कुछ कुछ मत समझो नादानी
चौका चूल्हा खटपट
बनता खाना झटपट
दादी हाथ न थमता
दिन कट जाता सरपट
दादा कलम न छोड़ें देख देख हैरानी
डैड माम का दफ्तर
सारे दिन का चक्कर
लाते थकतें होंगे
नून तेल घी शक्कर
इसीलिए जिद मेरी गुड़िया कहो कहानी
[सैंट जॉन :कनाडा :०९ .११.२०११]
कहतीं हूँ मैं सच सच
मत करना तुम किच किच
बहुत दूर रहतीं हैं
मेरी नानी सुचमुच
मैं कहतीं हूँ कुछ कुछ मत समझो नादानी
चौका चूल्हा खटपट
बनता खाना झटपट
दादी हाथ न थमता
दिन कट जाता सरपट
दादा कलम न छोड़ें देख देख हैरानी
डैड माम का दफ्तर
सारे दिन का चक्कर
लाते थकतें होंगे
नून तेल घी शक्कर
इसीलिए जिद मेरी गुड़िया कहो कहानी
[सैंट जॉन :कनाडा :०९ .११.२०११]
Wednesday, November 2, 2011
डाक्टर आनंद के दो शिशु गीत
मूँछ मूँछ ,भई, मूँछ
जिनकी ऊंची मूँछ
उनकी होती पूँछ
मूँछ मूँछ भई मूँछ
जिनकी नीची मूँछ
उनकी हो ना पूँछ
पूँछ पूँछ भई पूँछ
जिनकी कटती पूँछ
पूँछ मूँछ हो छूँछ
दो
कान कान भई कान
सुन सकते जो कान
जमा सकें वे ध्यान
कान कान भई कान
बहरें हों जो कान
छिन्न भिन्न हो ध्यान
छिन्न भिन्न हो ध्यान
जमा सकें ना ध्यान
परिसीमित हो ज्ञान
[सैंट जॉन :कनाडा :०२.११.२०११]
जिनकी ऊंची मूँछ
उनकी होती पूँछ
मूँछ मूँछ भई मूँछ
जिनकी नीची मूँछ
उनकी हो ना पूँछ
पूँछ पूँछ भई पूँछ
जिनकी कटती पूँछ
पूँछ मूँछ हो छूँछ
दो
कान कान भई कान
सुन सकते जो कान
जमा सकें वे ध्यान
कान कान भई कान
बहरें हों जो कान
छिन्न भिन्न हो ध्यान
छिन्न भिन्न हो ध्यान
जमा सकें ना ध्यान
परिसीमित हो ज्ञान
[सैंट जॉन :कनाडा :०२.११.२०११]
Wednesday, October 12, 2011
पढ़ना लिखना
पढ़ना लिखना है सुखदाई /मगर आजकल है दुखदाई
पढ़ा लिखा हो डिग्रीधारी
फिरें डिग्रियां मारीं मारी
पढी लिखी हो फैशन वाली
घर वाली हो नखरे वाली
कानी कौड़ी नहीं कमाई /खेत मडैया bechee khaee
पढी लिखी बन गयी कलक्टर
हुआ प्रमोशन बनी कमीश्नर
सुत vakeel ki nheen kamaaee
daayvors ki nauvat
Friday, September 30, 2011
निकले करने सैर
अमेरिका का हूस्टन शहर
निकले करने सैर
लम्बी चौडीं सडको पर भी
रिंगें न गाड़ी बैल
इतने वाहन धूमस काटें
चलना मुश्किल गैल
लाल बत्तियाँ रोक रोक कर
पूँछें सबकी खैर
निकले करने सैर
लम्बी चौडीं सडको पर भी
रिंगें न गाड़ी बैल
इतने वाहन धूमस काटें
चलना मुश्किल गैल
लाल बत्तियाँ रोक रोक कर
पूँछें सबकी खैर
डाउन टाउन में भी डाउन
हाल सुरंगें पूँछें
सातू नानू लगे नाचने
बैरों की लख मूंछें
पैसों का है खेल यहाँ सब
ना दोस्ती ना व्वैर
चारों ओर खडीं दीवारें
धरे अंगदी पाँव
आखें चकाचौंध हो जातीं
देख अनूठा गाँव
पूँछ रहा है गरीब-गुरबा
कहाँ धरतें हम पाँव
[हूस्टन :२०.०८.२०११]
Monday, September 19, 2011
प्रिय सिद्धांत और प्रिय शौर्य के शुभ जनम दिवस के अव सर पर
छ
श्री उमेश रश्मि रोहतगी की नविन कृति "भारत समस्याएँ" ककी विषय सूचि से गुजरा तो उसके छे अध्धायों में सहेजे / समेटे विभिन्न विषयों से अवगत हुआ। ह्हरेक में आपने जीवन में जो कुछ देखा सुना ब्भोगा और जीवन में उतरा उसे शब्दों के माध्यम से जन गन मन के लिए धरोहर के रूप मैं सोंपने का विशिष्ट उपक्रम किया है।
विषय सामान्य होते हुए भी इतने उपयोगी हैं की उनमें सुखी जीवन की सफलता के मंत्र गुथे हैं, उज्वल भविष्य के पथप्रदर्शक हैं। विशेष उल्लेखनीय ततो यह है की अमेरिका में रह कर भारत मैं की चिंताओं की चिंता करना उनके समाधान खोजना हरेक के लिए अनुकर्णीय है। जो निजी स्वार्थों को तिलांजलि देकर ही संभव है। इसलिए उनके ऊपर चरितार्थ होता है।
: पानी बाढ़े नाव में घर में बाढ़े दाम : दोनों हाथ लिचिये ये सज्जन को काम।
अथवा परोपकारं सताम्विभुती
साथ ही अमेरिका में भी मानवीय हितो की सुरक्षा में सपरिवार लगे रहना कम महत्व की बात नहीं है।
संछेप में आपके के क्रतत्व अवं सर्जन में मोलिकता सजीवता का समावेश 'व्विश्वा भावित एक निड्म', 'विश्व वन्धुत्व ke bhaav jhalakte hain ।
Wednesday, September 14, 2011
विश्व महान सिकंदर
उड़ते वायुयान केविन में
बूढें सोते जवान ऊघें
एक दूसरे को ना बूझें
बच्चों को तो चैन नहीं हैं
उनको जैसे रैन नहीं है
खेलें जैसे घर आगन में
नहीं किसी की कुछ भी सुनना
उल्टी खटिया सर पर रखना
उछल कूद बन्दर सी करना
विश्व महान सिकंदर बनना
सभी मुसाफिर हों हैवन में
[एमिरात ई के -२११ दुबई से हूस्टन :०६.०८.२०११]
बूढें सोते जवान ऊघें
एक दूसरे को ना बूझें
बच्चों को तो चैन नहीं हैं
उनको जैसे रैन नहीं है
खेलें जैसे घर आगन में
नहीं किसी की कुछ भी सुनना
उल्टी खटिया सर पर रखना
उछल कूद बन्दर सी करना
विश्व महान सिकंदर बनना
सभी मुसाफिर हों हैवन में
[एमिरात ई के -२११ दुबई से हूस्टन :०६.०८.२०११]
बच्चों का अधिकार
खेल कूद है
बच्चों का अधिकार
हुआ ज्ञान का
पर इतना विस्तार
खेलकूद में
पढ़ना हुआ ज़रूरी
वरना साधें सब रह जाँय अधूरी ।
[दुबई हस्टन कांटिनेंटल ई :२१६:०६.०८.२०११]
बच्चों का अधिकार
हुआ ज्ञान का
पर इतना विस्तार
खेलकूद में
पढ़ना हुआ ज़रूरी
वरना साधें सब रह जाँय अधूरी ।
[दुबई हस्टन कांटिनेंटल ई :२१६:०६.०८.२०११]
ओ मम्मी पापा !
ओ मम्मी पापा बात सुनो
सीधी साधी सी बात सुनो
बच्चे पैदा होते अच्छे
सब होते हैं मन के सच्चे
आस पास जैसा वे देखें
वैसा ही वे करना सीखें
इसलिए बनाना हो जैसा
वातावरण दीजिये बैसा
[हुस्तान:केटीअलमोंड कंप :१५.०८.२०११]
सीधी साधी सी बात सुनो
बच्चे पैदा होते अच्छे
सब होते हैं मन के सच्चे
आस पास जैसा वे देखें
वैसा ही वे करना सीखें
इसलिए बनाना हो जैसा
वातावरण दीजिये बैसा
[हुस्तान:केटीअलमोंड कंप :१५.०८.२०११]
नदिया कहे कहानी
माँ घर छोड़ा
बंधन तोड़ा
मन ही मन इठलाती
नदिया बन सुख पाती
गाती कल कल
कहती चल चल
आगे बढ़ती जाती
जीवन राग सुनाती
जैसे बच्चे
होते सच्चे
नदिया कहे कहानी
जैसे दादी नानी
[अहमदाबाद : पध्माकर्नगर ०५.०८ .२०११]
बंधन तोड़ा
मन ही मन इठलाती
नदिया बन सुख पाती
गाती कल कल
कहती चल चल
आगे बढ़ती जाती
जीवन राग सुनाती
जैसे बच्चे
होते सच्चे
नदिया कहे कहानी
जैसे दादी नानी
[अहमदाबाद : पध्माकर्नगर ०५.०८ .२०११]
प्यारा भोपाल
प्यारा शहर भोपाल
जिसमें तलैया ताल
बड़ा तलाब विशाल
जिसकी नहीं मिशाल
गंगा जमुनी वाणी
मीठी भाषा पानी
किसी की है ससुराल
किसी की है ननिहाल
रहती मेरी दादी
पहना करती खादी
मंदिर मस्जिद जाती
मुझको पाठ पढ़ाती
[रेलपथ भोपाल से रतलाम :०४.०८ .२०११]
जिसमें तलैया ताल
बड़ा तलाब विशाल
जिसकी नहीं मिशाल
गंगा जमुनी वाणी
मीठी भाषा पानी
किसी की है ससुराल
किसी की है ननिहाल
रहती मेरी दादी
पहना करती खादी
मंदिर मस्जिद जाती
मुझको पाठ पढ़ाती
[रेलपथ भोपाल से रतलाम :०४.०८ .२०११]
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