Thursday, November 17, 2011

डाक्टर अनाक्न्द के दो बालगीत

भीगी बिल्ली
दादा जी तबियत के अक्खड़
जब बोलेन तब तोड़ें लक्कड़
पर नातिन की अमृत वाणी
सुनते ही हों पानी पानी
नातिन कहती बनते घोड़ा
बरसाती फिर फटाफट कोड़ा
झटपट झटपट पहुंचें दिल्ली
बन जाते फिर भीगी बिल्ली
हाथ न आये जूता
जूता तो बस जूता
कर बैठे जब खूता
विश्वयुद्ध हो अगला
समझो उसे न पगला
नाक कान जब काटे
दुश्मन छक्के छूटे
चुपके से घर आये
कोने में छिप जाये
ढूढें सब जब जूता
हाथ न आये जूता
[सैंट जॉन :कनाडा :२१.१० २०११]

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