Friday, November 23, 2012

गाँव की हाट

                       गाँव  की हाट
देखो लगी गाँव की हाट 
रोंज़ रोंज़ न लगती हाट 
 
जगर मगर न शहरों जैसी
 बिछे चादरा बोरा टाट ...
 
आस -पास की पैदाबार 
हरी भरी सब्जी के ठाट ...
 
खाने  पीने का सामान
 मूँगफली गुड़ इमली चाट ... 
 
खेल खिलौना चकऱी डोर
 हसिया खुरपी मिलती खाट ... 
 
जोकर नट  जादू के खेल 
बच्चे जोहें झूला वाट 
[भोपाल 23.ई।2012]  

Monday, October 22, 2012

जल उठी जोती

मछुआ  रे ने कहा ,'मछरिया '
तू मेरी  रोटी का     जरिया
मेरा जाल तुझको बुलाता
सोनमछरिया फस जा फस जा
सोनमछरिया हस हस बोली:
भैया अपनी खोलो झोली
दल दिया झोले में मोती
दोनों ओर  जल उठी जोती
[भोपाल :22.10.2012]

Thursday, June 21, 2012

कावा काशी का सार

                                     कावा  काशी  का सार
                    ईश्वर  का अवतार हूँ मैं
मुझे न चिंता बीते कल की
मुझे न चिंता भावी कल की
जीता हूँ मैं वर्तमान में
बांटूं खुशियाँ  घर आँगन में
                  माँ बापू का प्यार हूँ मैं
भूंख लगे तो रोना -धोना
जब सोना तो सोना सोना
चुटकी चुम्बी से होयूं
टेड़ी भौहें देखू रोऊँ
                 प्रवृतियों का आगार हूँमैं
मेरे दुःख का ताना बाना
सारे घर का दर्द तराना
समय समाज सभी को चिंता
भागा रोग हुई निश्चिन्ता
               खुशियों का उपहार हूँ मैं  
जिस घर का हो आँगन सूना
बाँझ कोख का दुःख हो दूना
मैं भर दूं खुशियों से झोली
रोज़ मने दीवाली होली
             काबा काशी सार हूँ मैं
[भोपाल:20.06.2012]

Sunday, May 13, 2012

             बच्चों का पैगाम 
सबसे पहले उठती माम 
काम पुकारे उनका नाम 
दिन भर करती उतने काम 
लगे पेड़ पर जितने आम 
थक कर होकर चकनाचूर 
सोने को होती मजबूर 
सुनसुनकर सपनों की बीन
आती होगी कैसी नींद ?
स्वस्थ रहें हम सबकी माम 
सबसे ऊपर  उनका नाम  
हम बच्चों का यह पैगाम 
राष्ट्रपति दें उन्हें इनाम 
[ह्यूस्टन :ओ .07.2011]

Sunday, April 1, 2012

कर कँगना

                         कर कँगना
ओ प्यारी बहना
तुमसे कुछ कहना

तुम कोमल टहनी
पैजनियाँ पहनी
डगमग हो पैया
मैं थामूं बहियाँ
             सँभल सँभल चलना
             डग आगे धरना
पैजनियाँ छम छम
गम भागे गम गम
जन परिजन हेरें
चुटकी  दें टेरे
            नाचे घर अँगना
            बजे कर कँगना
[भोपाल:२४.०३.२०१२]                                                    

Friday, March 9, 2012

घर आँगन की किलकारी

                 घर आँगन की किलकारी
पीट रहीं हैं दादी नानी
चारों ओर ढिंढोरा
घर आँगन की है किलकारी
सोनीरा सोनीरा !

आओ सखी सहेली देखो
उड़नपरी सोनीरा
ऐसा लगता घर आँगन में
जैसे हुआ सवेरा
आनन् फानन अनुगूंजों ने
सबका सार बटोरा...

भनक पडी जब छै ऋतुओं के
कुसुम  कली    सोनीरा
चमक पड़े ममता से आनन्
जैसे चमके हीरा
ताली बजा कर नाँची
बजे ढोल मजीरा ...

क्षिति जल पावक गगन समीरा
बोले सुन सोनीरा.
चिंता मत करना दादी
नानी की सोनीरा
भर  देंगे हम आशीषों से
छूछा धरा कटोरा ...
[सैंट जॉन :कनाडा :२२.१२.२००२]

Friday, January 27, 2012

                    डोळारामा डोळारामा !
 बुला रहा है डोळारामा
बेचे नहीं सिला पजामा
छोटी मोटी सब चीजों का
बड़ा खज़ाना डोळारामा

खेल खिलौना बाँलीबाल
सस्ता सुन्दर बढ़िया माल
जी करता सब कुछ ले लूं
बच्चों में बाटूँ तत्काल

डोळारामा डोळारामा
बेचे सब कुछ सस्ते दामा
नाचता है सबके अधरों पर
डोळारामा डोळारामा

कपड़ा कपड़ा कपड़ा कपड़ा
जितना चाहो लेलो कपड़ा
एक से एक है कपड़ा बढ़िया
मोल भाव का यहाँ न लफड़ा
[सैंट जॉन कनाडा :१०.१२.२०१२]

Wednesday, January 25, 2012

मत रो मेरी गुइयाँ !

                                    मत रो मेरी गुइयाँ !
                 चलना सीख रही सोनीरा
                 घर आँगन  की गलियां
सिखा रहे हैं मम्मी पापा
थामें    दोनों       बहियाँ
 आगे बढ़ने की कोशिश में
 डगमग डगमग पैयां  
              जल्दी जल्दी आगे आओ  
              बुला रहीं हैं सखियाँ 
बाज  रहीं हैं छम छम छम छम
पग पग पर पैजनियाँ
पूसी लूसी लगीं खेलने
झटपट छूँछ बिलैयाँ          
            मन हीं मन खुश मम्मी पापा
            लेते ढेर वलैयाँ
मुँह के बल गिर गयी  अचानक
छूटीं दोनों बहियाँ
झटपट मम्मी लगी चुपाने
लेकर अपनी कनियाँ
            दौडीं दौडीं सखियाँ आईं
            मत रो मेरी गुइयाँ
[लोस एंजिलीस :अमरीका :२१.०१.२०१२]