Friday, November 23, 2012

गाँव की हाट

                       गाँव  की हाट
देखो लगी गाँव की हाट 
रोंज़ रोंज़ न लगती हाट 
 
जगर मगर न शहरों जैसी
 बिछे चादरा बोरा टाट ...
 
आस -पास की पैदाबार 
हरी भरी सब्जी के ठाट ...
 
खाने  पीने का सामान
 मूँगफली गुड़ इमली चाट ... 
 
खेल खिलौना चकऱी डोर
 हसिया खुरपी मिलती खाट ... 
 
जोकर नट  जादू के खेल 
बच्चे जोहें झूला वाट 
[भोपाल 23.ई।2012]  

2 comments:

  1. सुन्दर मन-भावन रचना।
    आनन्द विश्वास

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