गाँव की हाट
देखो लगी गाँव की हाट
रोंज़ रोंज़ न लगती हाट
जगर मगर न शहरों जैसी
बिछे चादरा बोरा टाट ...
आस -पास की पैदाबार
हरी भरी सब्जी के ठाट ...
खाने पीने का सामान
मूँगफली गुड़ इमली चाट ...
खेल खिलौना चकऱी डोर
हसिया खुरपी मिलती खाट ...
जोकर नट जादू के खेल
बच्चे जोहें झूला वाट
[भोपाल 23.ई।2012]
सुन्दर मन-भावन रचना।
ReplyDeleteआनन्द विश्वास
Vishwas ji bahut bahut dhanyvaad
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