Wednesday, December 28, 2011

करना इसकी खोज!

करना  इसकी खोज!

मेली प्याली दादी माँ
मालिछ करती रोज़
मेले तन मन में भल जाता
नया नया नित  ओज
मालिछ कलके नहलाती
मेली दादी रोज़
बिन नागा के नहलाना
लगे न उनको बोझ
नहला पहला कल कपड़े
देतीं दादा गोद
खुछ होतीं हैं वे कितनी
करना इछ्की खोज !
[सैंट जॉन :कनाडा :०९.१२.२०११]       

पापड़ बेले हैं !



जाने कितने रामलाल ने
सचमुच
पापड़ बेले हैं
बचपन में
आँसू ने बह बह
गहरा सागर रूप धरा
हुई नसीब न
दूध बूँद की
पानी पी पेट भरा
समय समाज कर्ज के ढेरों
हरदिन
झापड़ झेले हैं
बेचारी
अम्मा ने भेजा
ढोर चराने जंगल में
काले आखर भैंस बराबर
खूब रमा मन दंगल में
दाँव -पेंच के उस्तादों से
अनगिन
मन्त्र सीखे हैं
घर आँगन
खलिहान खेत के
सिर पर भारी क़र्ज़ लदा
रामलाल ने
होश सभाला
रहता हैं ग़मगीन सदा
सिर को
झंझट घेरे हैं
[भोपाल:३०.०८.०७]
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