चन्दा मामा तुम लगते हो
माखन मिश्री गोला
घटना बढना रूप बदलना
लगे उधारी चोला
घर से सूरज दादा निकले
लेकर अपना खाता
टकरा जायं राह में दादा
तुमको ना यह भाता
आँख मिचौनी खेला करते
नहीं पकड़ में आते
चांदीं के सिक्कों में ढलकर
सबका मन ललचाते
दादा के कर्जा के डर से
बहुरुपिया बन जाते
और अमावस की गोदी में
चुपके से छिप जाते
[भोपाल:२०.०८.०८]
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