Monday, January 27, 2014

अजब कहानी

अजब कहानी
बच्चो दुनिया बड़ी निराली
इसकी झोली कभी न खाली

जिसकी रही कामना जैसी
उसकी बनतीकिस्मत बैसी

तरह तरह के लोग लुगाई
रोना कहीं कहीं शहनाई

तीज और त्यौहार अनूठे
दुःख के सपने सारे झूठे

कही महकती केसर क्यारी
फूलों पर तितली बलिहारी

कहीं बर्फ की वर्षा होती
सूरज गर्मी आग उगलती

जामुन आम बाग बौराता
मधुरितु का जब मिलता न्योता

बनते मिटते राजा रानी
धरती थोड़ी ज्यादा पानी

धरती का जो ताना बाना
गा ना पाया कोई गाना

नई नई वैज्ञानिक पाती
सौपे नए ज्ञान की थाती

गगन गमकती रोज़ जुनैया
सागर तिरती नाविक नैया

गगन धरा की अजब कहानी
कहतीं थकती दादी -नानी
[भोपाल:२७.०१.२०१४]

Sunday, July 28, 2013

भारत में छै ऋतुएँ

भारत में छै ऋतुएँ
हर मौसम का राग विराग
अपनी ढपली अपना राग
     फूलों से झोली भर जाए
     कोयल भौरा  गीत सुनाए
    महक उठे वन उपवन कणकण
    ऋतुओं में ऋतुराज कहाए
  अवनी अम्वर गाये फाग
अपनी ढपली अपना राग
     धरा गगन में गर्मी छाये
     धूप बबंडर आँधी आये
    खोजे छाया में भी छाया
    जड़  चेत में प्यास जगाये
सूरज उगले पल पल आग
हर मौसम का राग विराग
      घन घमंड विजली गुर्राए
    बिरहिन  का जियरा घबराए
     उफनाए सब ताल  तलैया
    सब छानी छप्पर   चिचियाये 
झींगुर दादुर जागे भाग
हर मौसम का राग विराग
      वर्षा बाद शरद ऋतु आई
      ओढें काँस सफ़ेद रजाई
दीपक तम के धोये दाग़
हर मौसम के राग विराग
      शिशिर पाँव जब फैलाए
     घर आँगन बरात सज आए
    बाबुल का घर करे बिदाई
    आंसू सुख दुःख राग सुनाए
सोना चांदी हँसे सुहाग
हर मौसम का राग विराग
    दिन छोटे हों लम्बी रातें
    तोता मैना किस्सा बातें
   घुटने पेट से करें लड़ाई
   माघ पूस की तीखी घातें  
ठिठुरन सिकुडन उड़ें बिहाग
हर मौसम का राग विराग
[भरूच :०७. ०३. २००९.] 
 




Friday, November 23, 2012

गाँव की हाट

                       गाँव  की हाट
देखो लगी गाँव की हाट 
रोंज़ रोंज़ न लगती हाट 
 
जगर मगर न शहरों जैसी
 बिछे चादरा बोरा टाट ...
 
आस -पास की पैदाबार 
हरी भरी सब्जी के ठाट ...
 
खाने  पीने का सामान
 मूँगफली गुड़ इमली चाट ... 
 
खेल खिलौना चकऱी डोर
 हसिया खुरपी मिलती खाट ... 
 
जोकर नट  जादू के खेल 
बच्चे जोहें झूला वाट 
[भोपाल 23.ई।2012]  

Monday, October 22, 2012

जल उठी जोती

मछुआ  रे ने कहा ,'मछरिया '
तू मेरी  रोटी का     जरिया
मेरा जाल तुझको बुलाता
सोनमछरिया फस जा फस जा
सोनमछरिया हस हस बोली:
भैया अपनी खोलो झोली
दल दिया झोले में मोती
दोनों ओर  जल उठी जोती
[भोपाल :22.10.2012]

Thursday, June 21, 2012

कावा काशी का सार

                                     कावा  काशी  का सार
                    ईश्वर  का अवतार हूँ मैं
मुझे न चिंता बीते कल की
मुझे न चिंता भावी कल की
जीता हूँ मैं वर्तमान में
बांटूं खुशियाँ  घर आँगन में
                  माँ बापू का प्यार हूँ मैं
भूंख लगे तो रोना -धोना
जब सोना तो सोना सोना
चुटकी चुम्बी से होयूं
टेड़ी भौहें देखू रोऊँ
                 प्रवृतियों का आगार हूँमैं
मेरे दुःख का ताना बाना
सारे घर का दर्द तराना
समय समाज सभी को चिंता
भागा रोग हुई निश्चिन्ता
               खुशियों का उपहार हूँ मैं  
जिस घर का हो आँगन सूना
बाँझ कोख का दुःख हो दूना
मैं भर दूं खुशियों से झोली
रोज़ मने दीवाली होली
             काबा काशी सार हूँ मैं
[भोपाल:20.06.2012]

Sunday, May 13, 2012

             बच्चों का पैगाम 
सबसे पहले उठती माम 
काम पुकारे उनका नाम 
दिन भर करती उतने काम 
लगे पेड़ पर जितने आम 
थक कर होकर चकनाचूर 
सोने को होती मजबूर 
सुनसुनकर सपनों की बीन
आती होगी कैसी नींद ?
स्वस्थ रहें हम सबकी माम 
सबसे ऊपर  उनका नाम  
हम बच्चों का यह पैगाम 
राष्ट्रपति दें उन्हें इनाम 
[ह्यूस्टन :ओ .07.2011]

Sunday, April 1, 2012

कर कँगना

                         कर कँगना
ओ प्यारी बहना
तुमसे कुछ कहना

तुम कोमल टहनी
पैजनियाँ पहनी
डगमग हो पैया
मैं थामूं बहियाँ
             सँभल सँभल चलना
             डग आगे धरना
पैजनियाँ छम छम
गम भागे गम गम
जन परिजन हेरें
चुटकी  दें टेरे
            नाचे घर अँगना
            बजे कर कँगना
[भोपाल:२४.०३.२०१२]